बुधवार, 10 मार्च 2010

बोतल में घुसने वालो को फ़लक छोटा ही नजर आता हैं

अब क्या कहें उनको
वो पी कर बहक जाते हैं
मय की खुमारी में
बोतल में घुस जाते हैं 
ख़ुदी से भरे हुए
ख़ुदाई  सिखाते  हैं 
जब बोतल से निकल  नहीं पाते तो
चिल्ला चिल्ला के सबको बोतल में बुलाते हैं
जो बोतल में आ जाये 
तो उसे सबका यार बताते हैं
जो बोतल में न आये 
तो उसे सबका दुश्मन बताते हैं
बोतल में घुसने वालो को फ़लक छोटा ही नजर आता हैं 
जरा बाहर निकल के देखो फ़लक अपनी बाहें कहाँ तक फैलाता हैं

.......यारों  इशारे करता हैं ख़ुदा सभी की खातिर.......
...... ह़क परस्त ही समझे हैं अब तक ....... शैतानो को कहाँ नजर आते हैं.... ...........

सोमवार, 22 फ़रवरी 2010

तेरे हुस्न ने मोहब्बत को मेरे दिल का पता दिया -------- (फ़कीरा)

तेरे हुस्न ने मोहब्बत को मेरे दिल का पता दिया 
मेरी उलझी जिन्दगी को तेरी उलफ़त ने सुलझा दिया

तेरी मोहब्बत के आफ़ताब ने हर सुबह को खिला दिया 
मेरी दीवानगी के माहताब ने हर रात को शायराना बना दिया 


रुख से नक़ाब की बेवफ़ाई ने मुझे तेरा दीदार करा दिया
ज़हे-नसीब कि कुदरत ने  फिर इक कोहिनूर बना दिया


तेरी अदा ने शोले को शबनम बना दिया 
इश्क में इमां-ओ-दीं गया , तूने "फ़कीरा" बना दिया