शुक्रवार, 30 अक्तूबर 2009

"अजनबी"

अनजानी डगर पर मिला था "अजनबी"
दिल तोड़ गया आज शाम को

शिकयत करें भी अगर हम उसकी
जुबान पर लायें किस नाम को

शर्म कहाँ बची हैं "दिल्ली वाले" में
चांदनी चौक में बेच कर आ गया

मुर्ख प्राणी भटकता भावुकता लिए अन्धकार में
"अजनबी" सीने पर गरम लोहा चिपका गया

हाय हाय करता जब जाता था "अजनबी" के पास
जख्मों पर मरहम वो लगता था

गया अब किस डगर पर "अजनबी"
"दिल्ली वाले" पूछे....मेरा "नबी" कहाँ गया

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