किसकी महिमा हो तुम
प्रथम किरण की सौम्यता हो तुम
वसंत ऋतू की मोहकता हो तुम
तारक मणियों से सज्जित नभ हो तुम
पर्वतो से गिरते झरनों का संगीत हो तुम
प्रियतमे प्रकृति की महिमा हो तुम
सुन्दर मुख, सौन्दर्य अनुपम हो तुम
नीलकमल मृगनयनी हो तुम
षोडश श्रिंगार करे भाग्यलक्ष्मी हो तुम
तरुनी कोमल कलि हो तुम
प्रियतमे रूप की महिमा हो तुम
मधुर भावनाओ की तस्वीर हो तुम
वारुनी की मादकता हो तुम
हरे पल्लवों पर जमी ओस हो तुम
इस हृदय की कविता हो तुम
प्रियतमे प्रणय की महिमा हो तुम
वृस्तित गगन में गूंजता स्वर हो तुम
सात सुरों का एक सुर हो तुम
हृद्यांगन का प्रेम भरा गान हो तुम
अन्नत काल से लगा ध्यान हो तुम
प्रियतमे, जीवन की महिमा हो तुम
अंधकारमय जीवन का प्रकाश हो तुम
मेरे स्वप्नों का आकाश हो तुम
मरुस्तल में जल का आभास हो तुम
प्राणों का आधार, प्रणयनी हो तुम
प्रियतमे प्रबल भाग्य की महिमा हो तुम
प्रणय निवेदन स्वीकार करो तुम
सिन्धु तृष्णा को समाप्त करो तुम
शरणागत को शरण दे, उद्दार करो तुम
मेरे अमिट प्रेम का एहसास करो तुम
प्रियतमे तब जानेगा जगत कि किसकी महिमा हो तुम
bahut bahut sunder rachnaye hai.. 3-4 rachnaye padhi ..kasis karongi dhere dhere sari padhu,
जवाब देंहटाएंaccha laga apke blog par akar ...likhte rahiye shubkamnaye
बहुत बहुत धन्यवाद...वंदना जी.....बहुत अच्छा लगा जानकर कि आपको रचनाये पसंद आई......मेरी हमेशा कोशिश रहेगी कि अच्छा लिखता रहू...... मूल्यांकन तो मात्र पाठक के हाथो में हैं....
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