मंगलवार, 5 जनवरी 2010

क्या आशिक नहीं लगता हूँ????

...कोई बहाना दे मेरे दिल को...प्यार तुजसे न करे कम्बक्त
...जिंदगी कबसे बुला रही हैं मुझको...यह तेरी याद में खोया हैं हर वक़्त...

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....कभी आशिको पर हँसता था, आज उनके संग रोता हूँ...दर्द में कलम डुबो कर, टुटा फुटा लिखता हूँ...तुम हँसते क्यूँ हो...क्या आशिक नहीं लगता हूँ????

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11 टिप्‍पणियां:

  1. बिलकुल लगते हो बेटा। पक्के आशिक लगते हो हा हा हा आशीर्वाद्

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  2. क्या बात है ......... आशिक तो पूरी तरह से लग रहे हैं आप ..........

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  3. लगते हो भाई पक्के आशिक!! सारे रंग ढंग आ गए आशिकों वाले !! सुन्दर है !! लगे रहो!! !

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  4. लग रहे हो भाई एकदम आशिक टाइप..हा..हा..

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  5. कभी आशिको पर हँसता था,
    आज उनके संग रोता हूँ...
    दर्द में कलम डुबो कर,
    टुटा फुटा लिखता हूँ...
    तुम हँसते क्यूँ हो...
    क्या आशिक नहीं लगता हूँ??

    गज़ब तो लिखा है .....हंसेगे क्यों .....?

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  6. नहीं जनाब.. पक्के आशिक लगते हैं.. आपकी कलम में बहुत दर्द है..

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  7. बिना इश्क, कलम उठे कैसे ,हर लफ्ज़ आपके आशिक होने का दर्द बयां करता है .......एक सुंदर स्वाल के लिए आभार

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  8. अरे..इतनी अच्छी बात कोई आशिक ही कर सकता है.

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